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ReplyDeletewhen i clicked "rajesthan link" i got
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ReplyDeleteSir, how can I join your whatsapp group as I clicked on your website related group created but no link I am getting till now.pl suggest actually process
ReplyDeleteVivah
ReplyDeleteमहावीर जयंती पर जाने, जैन धर्म की सच्चाई
ReplyDelete👇👇
https://youtu.be/fu2ivSQZh1g
जैन धर्म की सच्चाई , किसी को समझ नही आई
ReplyDeleteजैन धर्म की सच्चाई , किसी को समझ नही आई
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जैन धर्म की सच्चाई , किसी को समझ नही आई
S A NEWS, 2 years ago 6 min 5936
ऋषभदेव वाली आत्मा बाबा आदम बनकर जन्मी जो प्रथम पुरूष तथा नबी माना जाता है।
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी हुए लेकिन जैन धर्म का जो वास्तविक पुनरुत्थान हुआ वह तो चौबिसवें तीर्थंकर महावीर जैन से हुआ। कबीर परमेश्वर जी अपने विधान अनुसार अच्छी आत्मा को मिलते हैं। उसी गुणानुसार कबीर साहेब जी ऋषभदेव जी के पास ऋषि रूप में गए। कबीर परमात्मा जी ने अपना नाम ‘कबि ऋषि’ बताया तथा कहा कि आप जो साधना कर रहे हैं इससे आपको पूर्ण मोक्ष हासिल नहीं होगा। मैं सत्य साधना बताता हूं वह करो। और भी बहुत सारे प्रमाण समझाये जिन्हें सुनकर राजा ऋषभदेव जी की आत्मा को झटका लगा जैसे कोई गहरी नींद से जागा हो। लेकिन ऋषभदेव जी के जो कुल गुरु ऋषिजन थे उन्होंने ऋषभदेव को नाम तथा हठयोग करके तप करने की विधि बताई थी जिसमें ऋषभदेव दृढ़ हो चुके थे। उन्होंने कबीर साहेब जी की बात नहीं मानी।
जानिये जैन धर्म की स्थापना कैसे हुई ?
ReplyDeleteराजा ऋषभदेव ने परमात्मा प्राप्ति करने तथा जन्म-मरण के दुःखद चक्र से छूटने के लिए वैराग्य धारण करने की ठानी। घर त्यागकर जंगल में चले गए। परमेश्वर कबीर जी भी जंगल में गए और ऋषभदेव जी से दौबारा मिले तथा कहा कि हे भोली आत्मा! आपने तो ‘‘आसमान से गिरे और खजूर पर अटके‘‘ वाली बात चरित्रार्थ कर दी है। राज्य त्यागकर जंगल में निवास किया, परंतु साधना पूर्ण मोक्ष की प्राप्त नहीं हुई। यह तो जन्म-मरण के चक्र में रहने वाली साधना आप कर रहे हो। मैं फिर कहता हूं मेरे पास सत्य साधना है। आप मुझ से दीक्षा ले लो, आपका जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। उनको आत्म बोध करवाया। ऋषभदेव ने कबि ऋषि की बातों पर विशेष ध्यान नहीं दिया। प्रभु कबीर देव चले गए। राजा ऋषभदेव जी पहले एक वर्ष तक निराहार रहे। फिर एक हजार वर्ष तक हठ योग तप किया। उसके पश्चात् स्वयं ही दीक्षा देने लगे। उन्होंने प्रथम धर्म दीक्षा अपने पौत्र मारीचि को दी जो भरत का पुत्र था। मारीचि वाला जीव ही आगे चलकर चौबीसवें तीर्थकंर बने जिनका नाम महावीर जैन था।
हठयोगी ऋषभदेव से दीक्षा लेकर भक्ति करने से मारीचि की दुर्गति हुई।
ReplyDeleteराजा ऋषभदेव जी यानि प्रथम तीर्थकंर जैन धर्म के प्रवर्तक से दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् मारीचि वाला जीव 60 करोड़ बार गधा बना, 30 करोड़ बार कुत्ता, 8 करोड़ बार घोड़ा, 20 करोड़ बार हाथी ,60 करोड़ बार नपुसंक, 60 हज़ार बार वैश्या तथा 3 हज़ार बार चंदन वृक्षों आदि के जन्मों में कष्ट उठाता रहा। कभी-कभी किसी जन्म में राजा भी बना और 80 लाख बार देवता बना तथा नरक भी भोगा और फिर ये उपरोक्त दुःख भोगकर महावीर जैन भगवान बना।
जैन दिगम्बर ऐसा मानते हैं कि नग्न रहने से मोक्ष हो सकता है तो फिर स्त्रियों को मोक्ष कैसे मिलेगा ?
ReplyDeleteऋषभदेव निवस्त्र रहने लगे थे क्योंकि उनको अपनी स्थिति का ज्ञान नहीं था। वे परमात्मा के वैराग्य में इतने मस्त हो चुके थे कि उनको ध्यान ही नहीं था कि वे नंगे हैं। वर्तमान के जैनी महात्माओं ने वह नकल कर ली और नंगे रहने लगे। यह मात्र परंपरा का निर्वाह है। जैन धर्म में दो प्रकार के साधु रहते हैं। एक तो वह जो बिल्कुल नंगे रहते हैं और पूर्व के महापुरूषों की नकल कर रहे हैं। जैन धर्म की स्त्री, पुरूष, युवा लड़के-लड़कियां, बच्चे-वृद्ध सब उन नग्न साधुओं की पूजा करते हैं। इनको दिगम्बर साधु कहा जाता है। इनमें स्त्रियों को साधु नहीं बनाया जाता। विचारणीय विषय यह है कि क्या स्त्रियों को मोक्ष नहीं चाहिए ? यदि आपका मार्ग सत्य है तो स्त्रियों को भी पुरुष जैन दिगम्बरों की तरह नग्न रह कर मोक्ष प्राप्ति करने दी जाए । सच्चाई को न मानकर मात्र परंपरा का निर्वाह करने से परमात्मा प्राप्ति नहीं होती। दूसरे साधु श्वेताम्बर हैं। वे सफेद वस्त्र, मुख पर कपड़े की पट्टी रखते हैं। इसमें स्त्रियां भी साधु हैं।
महावीर जैन का मनमाना आचरण- गुरु बिना दुर्गति निश्चित है।
ReplyDeleteमहावीर जैन ने तो किसी से दीक्षा भी नहीं ली थी यानि गुरू नहीं बनाया था। इसी कारण से महावीर जी का मोक्ष संभव नहीं है। महावीर जैन ने अपने अनुभव से 363 पाखण्ड मत चलाए जो वर्तमान में जैन धर्म में प्रचलित हैं। विचार करें महावीर जैन की आगे क्या दुर्दशा हुई होगी? यह स्पष्ट है क्योंकि राजा ऋषभ देव वेदों अनुसार साधना करते थे। वही दीक्षा मारीचि जी को दी थी। वेदों अनुसार साधना करने से मारीचि वाले जीव को ऊपर लिखित लाभ-हानि हुई। उनका जन्म-मरण जारी है तो महावीर जी ने तो वेदों के विरूद्ध शास्त्र विधि त्यागकर मनमाना आचरण किया था। गुरू से दीक्षा भी नहीं ली थी। उनको तो स्वपन में भी स्वर्ग नहीं मिलेगा। विचार कीजिए अन्य वर्तमान के जैनी भाई-बहनों को क्या मिलेगा?
जैन साधकों का मोक्ष तो स्वप्न में भी नही हो सकता।
जैनी मानते हैं कि सृष्टि का कोई कर्ताधर्ता नहीं है। यह अनादि काल से चली आ रही है। नर-मादा के संयोग से उत्पत्ति होती है, मरते हैं। जैनी मूर्ति पूजा में विश्वास रखते हैं। किसी परमात्मा की मूर्ति नहीं रखते जिनको हिन्दु समाज प्रभु मानता है जैसे श्री विष्णु, श्री शिव जी, श्री ब्रह्मा जी या देवी जी। ये अपने तीर्थकंर को ही प्रभु मानते हैं, उन्हीं की मूर्ति मंदिरों में रखते हैं। यह मंत्र का स्वरूप तथा उच्चारण बिगाड़कर ओंकार को “णमोकार” बनाकर जाप करते हैं। भक्ति में शरीर को अधिक कष्ट देना लाभदायक मानते हैं। (इस तरह की साधना तथा विधान निराधार तथा नरक दायक है। इनका मोक्ष तो स्वपन में भी संभव नहीं है।)
जैनियों जैसे क्रूरकर्मी मनुष्य शरीर और भक्ति के नाश के लिए ही उत्पन्न होते हैं।
ReplyDeleteगीता अ. 16 श्लोक 9 में कहा है कि गलत साधना द्वारा अनमोल जीवन नष्ट कराने वाले (उग्रकर्माणः) क्रूरकर्मी सर्व बालों को नौंच-नौंचकर उखाड़ना, निःवस्त्र फिरना, गर्मी-सर्दी से शरीर को बिना वस्त्र पहने कष्ट देना, व्रत करने के उद्देश्य से कई-कई दिन तक भोजन न करना। फिर संथारा ( संथारा क्रिया -अन्न,जल आहार प्रतिदिन कम करते हुए निराहार रह कर मृत्यु को प्राप्त होना) द्वारा भूखे-प्यासे रहकर देहान्त करना आदि-आदि क्रूरकर्म हैं। ऐसे क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत के नाश के लिए ही उत्पन्न होते हैं।
जैनियों को भी मोक्ष चाहिए तो संत रामपाल जी की शरण ग्रहण करो।
ReplyDeleteसंत रामपाल जी कबीर साहेब जी के स्वरुप हैं। कबीर परमेश्वर ने ऋषभदेव को हठयोग एवं “णमोकार” मंत्र को त्यागने एवं सत साधना करने के लिए बार-बार कहा लेकिन ऋषभदेव जी ने अपना हठ नही छोड़ा। अगर ऋषभदेव शास्त्र अनुकूल साधना करते तो ना उनकी दुर्गति होती और ना ही मनुष्यों का हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई धर्म के नाम पर बंटवारा होता क्योंकि यही ऋषभदेव फिर बाबा आदम बनकर जन्मा जो आज मुसलमानों, ईसाईयों तथा यहूदियों का प्रथम पुरूष तथा नबी माना जाता है। उपरोक्त दुःख भोगकर महावीर जैन की भी दुर्गती हुई। अगर वर्तमान के समस्त जैन साधक दुर्गति से बचना चाहते है तो संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करें और अपना कल्याण कराएं।
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ReplyDelete1. ब्रम्हा,विष्णु ,महेश के माता-पिता कौन है ?
2. शेरावाली माता (दुर्गा अष्टांगी) का पति कौन है ?
3. हमको जन्म देने व मारने में किस प्रभु का स्वार्थ है ?
4. हम सभी इतनी देवी-देवताओं की इतनी भक्ति करते हैं,फिर भी दु:खी क्यों हैं?
5. ब्रम्हा ,विष्णु ,महेश किसकी भक्ति करते हैं?
6. पूर्ण संत की क्या पहचान है एवं पूर्ण मोक्ष कैसे मिलेगा ?
7. परमात्मा साकार है या निराकार ?
8. किसी भी गुरु की शरण में जाने से मुक्ति संभव है या नहीं ?
9. तीर्थ, व्रत, तर्पण,श्राद्ध निकालने से लाभ संभव है या नहीं ?
10.श्री कृष्ण जी काल नहीं थे ! फिर गीता वाला काल कौन है ?
11.पूर्ण परमात्मा कौन तथा कैसा है ? कहाँ रहता है ?कैसे मिलता है ? किसने देखा है ?
12.समाधि अभ्यास (Meditation) राम,हरे कृष्ण ,हरिओम ,हंस,तीन व पांच नामों तथा वाहेगुरु आदि -आदि नामों के जाप से सुख एवं मुक्ति संभव है या नहीं ?
13.वर्तमान समय में प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं के अनुसार वह महान संत कौन है ?
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1. Who are the Mother and Father of Brahma, Vishnu and Mahesh?
2. Who is the Husband of Mother Sherawali (Durga/Ashtangi)?
3. Which God has selfish interest in our birth and death?
4. We do so much worship of all the gods-goddesses, then why are we still distressed?
5. Whose bhakti (devotion) do Brahma, Vishnu and Mahesh do?
6. What is the identity of a Complete Saint? And how will we attain complete salvation?
7. Is God in form or formless?
8. Is salvation possible by going in the refuge of any Guru?
9. Is it beneficial to go to places of pilgrimage, to keep fasts, to offer libations of water to gods, to carry out shraadhs etc? (According to Gita ji)
10. Shri Krishna ji was not Kaal; then who is the Kaal of Gita?
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