jain paryushan 2016
वर्षा ऋतु में अनंत जीवों की उत्पत्ति होती है | हमारे आवागमन से इनकी हिंसा से बचने हेतु परमात्मा ने चातुर्मास (चोमासा) प्रणाली स्थापित की थी | साधु-साध्वी चातुर्मास यानी वर्षाकाल में एक ही जगह स्थिरता करते हैं – मुख्य कारण है जीव हिंसा की विराधना से बचने का |
सीधी सरल व्यवस्था व हिंसा से बचने हेतु इसका स्वरूप बना | वर्षा काल में गोचरी इत्यादि की बाधा उत्पन्न हो तो ऐसे समय में अनुकूलता अनुसार तप साधना का भी दिशा निर्देश दिया गया है |
आजकल मौसम चक्र अचानक बदलता है बेमौसम वर्षा भी होती है | ऐसे संयोग में भी एक जगह स्थिरवास हो | जहां पर स्थितवास हो वहां के सभी लोगों (स्थानीय भी) को धर्म के सिद्धांतों का ज्ञान बाटना – प्रवचन (व्याख्यान) के माध्यम से एवं योग्य शिक्षक (पंडित) द्वारा स्वयं की ज्ञान-ध्यान की साधना को और व्यापक बनाना – यह चातुर्मास की व्यवस्था का अंग है |
लेकिन आज आधुनिकता के इस युग में वर्षाकाल में भी ‘धर्म’ के नाम पर विशाल उत्सव मनाएं जाते हैं | अपनी या अपने गुरुओं की जयंती, विभिन्न धार्मिक उत्सव इत्यादी अत्यंत धूमधाम से मनाये जाते हैं जबकि धर्मगुरुओं को अच्छी तरह पता है कि वर्षाकाल में जीवों की उत्पत्ति अधिक होने से जीव हिंसा कितनी बढ जाती है ?
ऐसे आयोजनों में बाहर से प्रमुख अतिथिगण को बुलाया जाता है | स्थानीय शहर में हर कोने कोने से परिवहन की व्यवस्था की जाती है | विशाल तादात में आने वाले श्रद्धालुओं हेतु भोजन व्यवस्था एवं अन्य कई तरह की व्यवस्थाएं… तब यह हिंसा का मापदंड कहा जाता है, संसारी व्यक्ति भी चातुर्मास के महीनों में शादी विवाह इत्यादि समारंभ के आयोजन वर्षाकाल में अति जीव हिंसा से बचने हेतु नहीं करता है |
चूँकि वर्षा ऋतु में जीव हिंसा अति होती है, ऐसे धार्मिक आयोजनों में सुबह का नाश्ता सूर्योदय के पश्चात ही तैयार किया जाए | सीरा, मूंग पूरी, इडली, डोसा, केसरी भात, उप्पीट इत्यादि कई खाद्यान है जो सूर्योदय के पश्चात तैयार कर नवकारसी तक सुगमता से तैयार कर परोसे जा सकते हैं |
इसी प्रकार सुबह शाम का भोजन भी तय समय पर सहजता से संपन्न हो सकता है | अगर संख्या की सीमित हो तो व्यवस्था भी सुगम होती है और हिंसा से काफी हद तक बचा जा सकता है | प्रयास हो हर कार्य में सादगी लाने के | धार्मिक आयोजनों में आने वालों की संख्या का सही आभास नहीं होता अतः से ऐसे सात्विक तुरंत बनाए जा सकने वाले भोजन बनाकर पापों से भी बचा जा सकता है | किसी भी खाद्य प्रदार्थ के बिलकुल झूठा नहीं छोड़ने के प्रयास हो |
लेकिन अज्ञानता वश, प्रदर्शन वश, जाने-अनजाने में अति हिंसा कर बैठते हैं | यह शिक्षा धर्म गुरु व साध्वीगण सभी को दें ताकि हमारे अहिंसा के सिद्धांतों का बारीकी से पालन हो |
क्या इन आयोजनों को शांतिपूर्वक धर्म के सिद्धांतों, तप व साधना से नहीं मनाया जा सकता | क्या ऐसे आयोजन पैसे के, वैभव के प्रदर्शन नहीं बनते जा रहे है ? कहां गया धर्म का वह सूक्षम ज्ञान जो हिंसा से बचने की सीख देता है ?
JAIN MATRIMONIAL
JAIN MATRIMONIAL
अपने विचार व्यक्त करे
COMMENT BOX
#SHARE #LIKE #WHATSAPP #FOLLOW US
No comments:
Post a Comment